Saturday, May 29, 2021

!! बुद्धिमान कौन? !!


प्राचीन काल की बात है | एक गांव में चार दोस्त रहते थे | चारों ही ब्राह्मण थे | साथ खाते, साथ पीते और साथ ही

रहते थे | तीन तो खूब पढ़े लिखे थे, मगर एक अनपढ़ ही था। हालाँकि वह बुद्धिमान भी बहुत था ।

मगर अनपढ़ होने के कारण उसके अन्य तीन मित्र उसका उपहास ही उड़ाते रहते थे, लेकिन दोस्त होने के कारण बात आई-गई हो जाती थी। और वे पुरानी बातें भूल कर फिर से बातें बनाने लगते।

एक दिन चारों बातें कर रहे थे। बातों ही बातों में बात निकली कि उन चारों में से सर्वाधिक बुद्धिमान कौन है? इस बात को लेकर जो बात बढ़ी तो बढ़ती ही चली गई। 

अन्त में निश्चय हुआ कि वे चारों दूसरे राज्य में जाकर वहाँ के राजा को खुश करके जो धन लाएगा | वही उनमें से ज्यादा बुद्धिमान होगा।




यह निश्चय कर वे चारों दूसरे राज्य की ओर चल पड़े। 

रास्ते में ये तीनों चौथे पर कोई ना कोई फिकरा छोड़ देते, मगर वह चौथा सिर्फ मुस्कुरा कर उनकी बात टाल देता।

दो दिन तक चलने के बाद चारों एक जंगल में पहुँचे। उन्होंने जंगल में कुछ देर ठहरने का निश्चय किया | मगर चौथा मित्र इस पर सहमत नहीं हुआ। वह बोला "दोस्तों, कुछ ही समय बाद अंधेरा हो जाएगा, अतः हमें शीघ्र से शीघ्र यहाँ से निकल चलना चाहिए।" 

मगर उसके अन्य तीनों मित्रों ने उसका उपहास उड़ाकर उसे चुप कर दिया। तभी उनमें से एक की नजर किसी मृत जानवर पर पड़ी। वह अपने दूसरे मित्रों से बोला – "मित्रो देखो! कोई जीव यहाँ मृत अवस्था में पड़ा है, पता नहीं कौन-सा जीव है, क्योंकि इसका चमड़ा गल गया है, शक्ल पहचान में नहीं आती।"

तीनों मित्रों ने उस तरफ देखा जहाँ जानवर की हड्डियां पड़ी थीं। हड्डियों पर एक नजर डालने के बाद एक ने सुझाव दिया।

"क्यों नां हम अपनी विद्याओं की जाँच करें | राजा के पास पहुँचने से पहले ही यह जाच हो जाएगी कि हममें कौन बुद्धिमान और विद्वान है।" एक ने सलाह दी। अन्य तीनों ने उसकी सलाह मान ली।

एक अन्य ने कहा-"ठीक है, मैं इन हड्डियों को जोड़कर ढांचा तैयार कर देता हूँ।" कहकर झट उसने हड्डियाँ विद्या जोड़कर ढाँचा तैयार कर दिया। 

तब दूसरे ने ढाँचे पर माँस, चमड़ीऔर नसों में खून पैदा कर दिया और पीछे हट गया। खाल-माँस चढ़ने पर ढाँचा शेर में परिवर्तित हो गया ।

इसी बीच चौथा जो अनपढ़ था, खामोशी से उनकी हरकतें व बातचीत सुनता रहा। उसने उनकी बातों में दखल देना अच्छा ना समझा |

इधर दूसरे के पीछे हट जाने के बाद तीसरा आगे आया और बोला – "तुमने इसकी हड्डियों को जोड़कर ढांचे में परिवर्तित कर दिया और तुमने उस ढाँचे पर खालमाँस चढ़ा दी, मगर किसी में जान फेंकना सबसे बड़ी विद्या है। जो मेरे पास है | अब देख, कैसे मैं इस जीव में जान डालता हूँ।" कहकर वह शेर में जान डालने के लिए आगे बढ़ा।

तभी चौथा व्यक्ति बोल उठा–"अरे ठहरो भैया!"

"क्यों क्या हुआ?" तीसरा झल्लाकर उसकी ओर घूमा।

"लगता है इसे डर लग रहा है।" दूसरा उपहासजनक स्वर में बोला।

"शेर से ।" पहले वाले ने शेर के पुतले की तरफ इशारा किया और तीनों हँस पड़े।

तीसरा बोला – "ओ मूर्ख! तू चुप रह, दोबारा मत बोलियो ।"

"मगर भैया, अगर यह शेर जीवित हो गया तो यह हम सबको खा जाएगा।" चौथे ने अपने मन की मंशा को प्रकट किया।

"चुप कर मूर्ख तू तो ज्ञान को ही बेकार कर देगा, मैं तो इसे जीवित करके ही रहूँगा ।" तीसरा घमण्ड में बोला।

तब चौथे ने सोचा कि 'यह तो शेर को जीवित कियेP बिना बाज ना आएगा और शेर जीवित होते ही उन्हें मार डालेगा। ये तो मानेंगे नहीं, अतः वह अपना बचाव तो कर ले।'

यह सोचकर वह उन तीनों से बोला-"ठीक है भैया, जैसी तुम्हारी मर्जी, मगर जरा एक मिनट ठहर जाओ ।" कहकर वह एक पेड़ पर जा चढ़ा।

उसे पेड़ पर चढ़ते देख वे तीनों हंस पड़े। लेकिन उसने उन तीनों की हंसी को नजर अन्दाज कर दिया और पेड़ पर बैठ गया।

तब तीसरे विद्वान ने अपनी विद्या से शेर को जीवित करने के लिए मन्त्र पढ़कर शेर पर फेंके । कुछ ही पलों में शेर दहाड़ता उठ खड़ा हुआ। शेर ने अपने सामने तीन-तीन प्राणियों को देखा तो उसकी जीभ में पानी आ गया।

इधर जीवित शेर को देखते ही उन तीनों की हालत पतली हो गई। वे बहाँ से भागने की कोशिश करने लगे, मगर शेर ने उन्हें भागने का मौका नहीं दिया, 

उसने एक को पंजे से मारा, दूसरे को धक्का देकर गिरा दिया और तीसरे को सीधे दाँतों से जकड़ लिया। और कुछ ही देर में तीनों को खा गया। फिर वह वहाँ से चला गया। 

पेड़ पर बैठा चौथा ब्राह्मण नीचे उतरा और बोला-."सबसे बड़ा बुद्धिमान कौन? वह जो अपने द्वारा जीवित किये गये शेर द्वारा मारे गये | क्या वो जो शेर का आहार बनने से बच गया ।" कहकर वह दूसरे राज्य के राजा को खुश करने चल दिया।

Thursday, May 27, 2021

जोधपुर का फर्नीचर व्यवसायी हिरालाल

एक बार जोधपुर का फर्नीचर व्यवसायी हिरालाल अपने मित्र के आमंत्रण पर दिल्ली गया।

एक शाम वह अकेला ही एक बार में पहुंचा, बीयर की एक बोतल ली और बार के एक कोने में पड़ी टेबल पर जाकर बैठ गया।
उसकी टेबल के पास एक कुर्सी और थी जो खाली थी।
कुछ देर बाद एक सुंदर सी युवती उसके पास आकर रुकी ।
उसने अंग्रेजी में हीरालाल से कुछ कहा जो उसे समझ में नहीं आया
हीरालाल ने उसे बैठने का इशारा किया।

हीरालाल ने अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में उससे बात करने की कोशिश की पर बेकार।

वे दोनों ही एक दूसरे की बात समझ नहीं पा रहे थे।
आखिर हीरालाल ने एक कागज पर बीयर के गिलास का चित्र बनाकर उसे दिखाया जिसे देखकर उसने हां में सिर हिलाया।
हीरालाल समझ गया कि लड़की बीयर पीना चाहती है। उसने उसके लिए भी एक बीयर का आर्डर कर दिया।

पीना खत्म होने के बाद हीरालाल ने एक और कागज पर खाने से भरी प्लेट का चित्र बनाकर उसे दिखाया।
उसने फिर हां में सिर हिलाया और हीरालाल ने खाने का आर्डर भी कर दिया।
खाना खाने के बाद, युवती ने एक कागज लिया,
उस पर पलंग का चित्र बनाकर वह हीरालाल को दिखाकर मुस्कराई।

हीरालाल ने चकित होते हुए उसके जबाब में हां में सिर हिलाया और बिल चुकाकर चला आया।

इस बात को 15 साल हो गये,
आज तक हीरालाल को यह समझ में नहीं आया कि लड़की ने कैसे जाना कि…
वह फर्नीचर का कारोबार करता है..???
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

বিদ্বতাৰ ওপৰত কেতিয়াও অহংকাৰ কৰিব নালাগে

পিয়াহত আতুৰ হৈ ভ্ৰমণৰত কালিদাসে এগৰাকী মহিলাক কুঁৱাৰ পাৰত দেখি ক'লে : "হে মাতৃ, অলপ পানী দিয়ক, আপোনাৰ পুণ্য হ'ব।"
কালিদাসলৈ চাই তিৰোতাগৰাকীয়ে ক'লে : "তোমাক মই চিনি পোৱা নাই। তোমাৰ পৰিচয় দিয়া বাটৰুৱা। মই নিশ্চয় তোমাক পানী দিম।"
"মই পথিক দেৱী। অনুগ্ৰহ কৰি পানী দিয়ক।" কালিদাসে উত্তৰ দিলে।
তিৰোতাগৰাকীয়ে ক'লে : "তুমি পথিক কেনেকৈ হ'বা, পথিক মাত্ৰ দুজনহে! সূৰ্য্য আৰু চন্দ্ৰ; যি অবিৰতভাৱে ভ্ৰমণ কৰি থাকে। ইয়াৰ ভিতৰত তুমি কোনজন? সঁচাকৈয়ে কোৱাচোন?"
কালিদাসে আকৌ ক'লে : "মই আলহী দেৱী, মোক অনুগ্ৰহ কৰি পানী দিয়ক।"
"তুমি কেনেকৈ আলহী হ'বা! সংসাৰত দুজনহে আলহী আছে, এক হৈছে ধন আৰু অানটো যৌৱন। ইহঁত আহে আৰু যায়। তুমি সঁচাকৈয়ে কোৱা, কোন তুমি?" তিৰোতাগৰাকীয়ে পুনৰ ক'লে।
কালিদাসে তিৰোতাগৰাকীৰ প্ৰশ্নত পৰাজিত হৈ পুনৰ ক'লে : "হে দেৱী, মই সহনশীল হওঁ। এতিয়া আপুনি মোক পানী দিয়ক।"
তিৰোতাগৰাকীয়ে মিচিকিয়া হাঁহি মাৰি কালিদাসক ক'লে : "নহয়, কাৰণ সহনশীল দুজনেই আছে! প্ৰথমজন ধৰতী অৰ্থাৎ পৃথিৱী, যি পাপী আৰু পুণ্যাত্মা সকলোৰে ভৰ সহন কৰি আছে, যাৰ বক্ষ বিদাৰি বীজ দিয়াৰ পিছতো খাদ্যৰ ভাণ্ডাৰ দান কৰে আৰু দ্বিতীয়তে গছ, যাক পাথৰ মৰাৰ পিছতো মিঠা ফল প্ৰদান কৰে। তুমি সহনশীল নহয়, সঁচাকৈ কোৱা তুমি কোন?"
কালিদাস মূৰ্চ্ছা প্ৰায়ৰ দৰেই হ'ল।পুনৰ কালিদাসে ক'লে : "মই হতাশ হওঁ। আগতে পানী দিয়ক মাতৃ। মই বাৰে বাৰে আহোঁ।"
"তুমি পুনৰ মিছা কৈছা। নখ আৰু চুলিহে হতাশ নহয়। যিমান কাটা আকৌ আগৰ দৰেই হয়। তুমি ব্ৰাহ্মণ নেকি? সঁচা কোৱা ব্ৰাহ্মণ কোন তুমি?"
কালিদাস সম্পূৰ্ণৰূপে পৰাজিত আৰু অপমানিত অনুভৱ কৰি আকৌ ক'লে : " তেনেহ'লে মই মূৰ্খহে।"
"তুমি কেনেকৈ মূৰ্খ হ'বা? মূৰ্খ কেৱল দুজনহে। প্ৰথম ৰজা, যি যোগ্যতা নোহোৱাকৈ দেশ শাসন কৰে আৰু দ্বিতীয় হ'ল ৰাজ পণ্ডিত, যি ৰজাক প্ৰসন্ন ৰাখিবলৈ ভুল কথাৰ ওপৰত তৰ্ক কৰি সত্য সিদ্ধ কৰিবলৈ চেষ্টা কৰে।"
একো উত্তৰ দিব নোৱৰা হৈ কালিদাসে বৃদ্ধ মহিলাগৰাকীৰ ভৰিত পৰি কান্দি কান্দি পানীৰ বাবে হাহাকাৰ কৰিবলৈ ধৰিলে। তেতিয়া বৃদ্ধাগৰাকীয়ে ক'লে : "উঠা বৎস।"
কালিদাসে উপৰ মস্তক হৈ তিৰোতাগৰাকীলৈ লক্ষ্য কৰাত দেখিলে যে সাক্ষাৎ মাতা সৰস্বতী তেওঁৰ সন্মুখত! লগে লগে নতমস্তক হৈ পৰিল।
মাতা সৰস্বতীয়ে ক'লে : "শিক্ষাৰ পৰা জ্ঞান আহে, অহংকাৰ নহয়।তুমি শিক্ষাৰ বলত পোৱা মান আৰু প্ৰতিষ্ঠাক নিজৰ উপলদ্ধি বুলি ভাবি অহংকাৰী হৈ পৰিলা, সেয়ে তোমাৰ জ্ঞানচক্ষু খুলিবৰ বাবেই এই পৰীক্ষা কৰিলো। লোৱা, পানী লোৱা।"
কালিদাসে নিজৰ ভুল বুজিব পাৰিলে আৰু ভৰপেট পানী খাই মাতাৰ পৰা বিদায় লৈ অান স্থানলৈ গমন কৰিলে।

বিদ্বতাৰ ওপৰত কেতিয়াও অহংকাৰ কৰিব নালাগে, এনে অহংকাৰে বিদ্বতা নষ্ট কৰিব পাৰে।
দুটা বস্তু কেতিয়াও ব্যৰ্থ হ'বলৈ দিব নালাগে…
অন্নৰ কণ
আৰু
আনন্দৰ ক্ষণ!

(সংগৃহীত & অনুবাদমুলক ..ভাল লাগিল পঢ়ি...শ্বেয়াৰ কৰিছো....)