Sunday, January 17, 2021

The Magic fish

Every day, Robert's grandfather went fishing. One day, Robert asked to go too. 
'Well, I want to catch the magic fish. The first person to eat it will become the cleverest person in the world. Can you help me?' 
'Yes!' said Robert, and they went fishing. 
First, they caught a yellow fish with purple spots. 'Wow! Is that the magic fish?' asked Robert. 
'No,' said his grandfather. 
Then they caught a blue fish with red stripes. 'Is that the magic fish?' asked Robert. 
'No,' said his grandfather. 
Suddenly, they caught a big, beautiful silver fish with pink and green diamonds. Robert's grandfather jumped for joy. It was the magic fish! They started to cook the fish, and his grandfather went to get some more wood. He asked Robert to watch the fish, but not to eat any of it.
 Robert watched the fish very carefully. He saw a tiny bubble on its tail. He touched it with his finger. Pop! The bubble burst. The fish was very hot and burnt his finger. Ouch! He put his finger in his mouth. 
When his grandfather came back, he saw that something was different. 'Did you touch the fish?' asked his grandfather. 
'Yes, I'm sorry,' said Robert. 
His grandfather sighed a happy sigh and gave Robert a big hug. 'The magic fish chose you. You are the cleverest boy in the world, and I am the proudest grandfather ever!'
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संसार क्या है?

एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, 'गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?' इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई। 'एक नगर में एक शीशमहल था। महल की हरेक दीवार पर सैकड़ों शीशे जडे़ हुए थे। एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया। महल के भीतर उसे सैकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दु:खी लग रहे थे। उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा। उसे सैकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे। वह डरकर वहां से भाग गया। कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी कोई जगह नहीं हो सकती।

कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा। वह खुशमिजाज और जिंदादिल था। महल में घुसते ही उसे वहां सैकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे। उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना। वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ।'

कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा, 'संसार भी ऐसा ही शीशमहल है जिसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है। जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख और आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं। जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं उनकी झोली में दु:ख और कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता।

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Wednesday, January 13, 2021

मन की शांति

एक गरीब आदमी था। वह हर रोज अपने गुरु के आश्रम जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वो अपने गुरु से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए।

एक दिन गुरु ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए काम करने आते हो। उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढ़ेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे। गुरु ने कहा कि तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा। युवक चला गया। समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया। 

कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा। गुरु ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा- क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वो व्यक्ति बोला- बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका।

गुरुजी, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया। गुरु ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था? जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना।  फिर आज यहां क्या करने आए हो ? उसकी आंखों में आंसू भर आए, गुरु के चरणों में गिर पड़ा और बोला- अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शान्ति मिल जाए। गुरु ने कहा- पहले तय कर लो कि अब कुछ मांगने के लिए आश्रम की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे।

गुरु ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर गुरु को देखता रहा और बोला- मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है।

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संतोषी व्यक्ति

एक बहुत विद्वान संत थे। वे कहीं भी ज्यादा दिन नहीं रहते थे, पैदल ही एक शहर से दूसरे शहर जाकर लोगों को प्रवचन दिया करते थे। लोग भी उन्हें बहुत मानते थे और सम्मान करते थे। 

एक बार संत पैदल ही दूसरे शहर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सोने का सिक्का मिला। महात्मा ने उसे उठा लिया और अपने पास रख लिया। उन्होंने सोचा कि ये सिक्का मैं सबसे गरीब इंसान को ही दूंगा।

संत कई दिनों तक ऐसे किसी इंसान की तलाश करते रहे, जो बहुत गरीब हो। लेकिन उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आया। इस तरह कुछ समय और बीत गया। संत भी वो बात भूल गए।

एक दिन संत ने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। तभी साधु को सोने के सिक्के की याद आई। उन्होंने वो सिक्का निकाला और राजा के ऊपर फेंक दिया।

संत को ऐसी हरकत करते देख राजा नाराज भी हुआ और आश्चर्यचकित भी। राजा ने संत से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि- राजा, कुछ समय पहले ये सोने का सिक्का मुझे रास्ते से मिला था। मैं इसे सबसे गरीब इंसान को देना चाहता था। लेकिन मुझे अभी तक कोई गरीब मनुष्य नहीं दिखाई दिया। आज जब मैंने तुम्हें देखा तो लगा कि तुम ही सबसे गरीब मनुष्य हो।

राजा ने संत से पूछा कि- आपको ऐसा क्यों लगा, क्योंकि मैं तो राजा हूं। मेरे पास तो अकूत धन-संपत्ति है। संत ने कहा- इतना धन होने के बाद भी तुम दूसरे राज्य पर अधिकार करना चाह रहे हो। वो भी सिर्फ उस राज्य का धन पाने के लिए तो तुमसे बड़ा गरीब और कौन हो सकता है। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो अपनी सेना लेकर अपने देश लौट गया।

*शिक्षा:-*
कभी किसी दूसरे के धन पर नजर नहीं रखनी चाहिए। हमेशा अपनी मेहनत से कमाए गए धन में ही संतोष करना चाहिए। इस दुनिया में संतोषी व्यक्ति ही सबसे सुखी है। संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं।

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Thursday, January 7, 2021

उपदेश


                    *!! उपदेश !!*
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किसी नगर में एक बूढ़ा चोर रहता था। सोलह वर्षीय उसका एक लड़का भी था। चोर जब ज्यादा बूढ़ा हो गया तो अपने बेटे को चोरी की विद्या सिखाने लगा। कुछ ही दिनों में वह लड़का चोरी विद्या में प्रवीण हो गया। दोनों बाप बेटा आराम से जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन चोर ने अपने बेटे से कहा, "देखो बेटा, साधु-संतों की बात कभी नहीं सुननी चाहिए। अगर कहीं कोई महात्मा उपदेश देता हो तो अपने कानों में उंगली डालकर वहां से भाग जाना, समझे।

"हां बापू, समझ गया।" एक दिन लड़के ने सोचा, क्यों न आज राजा के घर पर ही हाथ साफ कर दूं। ऐसा सोचकर उधर ही चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने देखा कि रास्ते में बगल में कुछ लोग एकत्र होकर खड़े हैं। उसने एक आते हुए व्यक्ति से पूछा, "उस स्थान पर इतने लोग क्यों एकत्र हुए हैं?"

उस आदमी ने उत्तर दिया, "वहां एक महात्मा उपदेश दे रहे हैं।" यह सुनकर उसका माथा ठनका। 'इसका उपदेश नहीं सुनूंगा।' ऐसा सोचकर अपने कानों में उंगली डालकर वह वहां से भाग निकला। जैसे ही वह भीड़ के निकट पहुंचा एक पत्थर से ठोकर लगी और वह गिर गया। उस समय महात्मा जी कह रहे थे, "कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। जिसका नमक खाएं उसका कभी बुरा नहीं सोचना चाहिए। ऐसा करने वाले को भगवान सदा सुखी बनाए रखते हैं।" ये दो बातें उसके कान में पड़ीं। वह झटपट उठा और कान बंद कर राजा के महल की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर जैसे ही अंदर जाना चाहा कि उसे वहां बैठे पहरेदार ने टोका, "अरे कहां जाते हो? तुम कौन हो?" उसे महात्मा का उपदेश याद आया, 'झूठ नहीं बोलना चाहिए।' चोर ने सोचा, आज सच ही बोल कर देखें। उसने उत्तर दिया, "मैं चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं।"

"अच्छा जाओ।" उसने सोचा राजमहल का नौकर होगा। मजाक कर रहा है। चोर सच बोलकर राजमहल में प्रवेश कर गया। एक कमरे में घुसा। वहां ढेर सारा पैसा तथा जेवर देख उसका मन खुशी से भर गया। एक थैले में सब धन भर लिया और दूसरे कमरे में घुसा। वहां रसोई घर था। अनेक प्रकार का भोजन वहां रखा था। वह खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद वह थैला उठाकर चलने लगा कि तभी फिर महात्मा का उपदेश याद आया, 'जिसका नमक खाओ, उसका बुरा मत सोचो।' उसने अपने मन में कहा, 'खाना खाया उसमें नमक भी था। इसका बुरा नहीं सोचना चाहिए।' इतना सोचकर, थैला वहीं रख वह वापस चल पड़ा। पहरेदार ने फिर पूछा, "क्या हुआ, चोरी क्यों नहीं की?"

देखिए जिसका नमक खाया है, उसका बुरा नहीं सोचना चाहिए। मैंने राजा का नमक खाया है, इसलिए चोरी का माल नहीं लाया। वहीं रसोई घर में छोड़ आया।" इतना कहकर वह वहां से चल पड़ा।

उधर रसोइए ने शोर मचाया, "पकड़ो, पकड़ों चोर भागा जा रहा है।" पहरेदार ने चोर को पकड़कर दरबार में उपस्थित किया।

राजा के पूछने पर उसने बताया कि एक महात्मा के द्वारा दिए गए उपदेश के मुताबिक मैंने पहरेदार के पूछने पर अपने को चोर बताया क्योंकि मैं चोरी करने आया था। आपका धन चुराया लेकिन आपका खाना भी खाया, जिसमें नमक मिला था। इसीलिए आपके प्रति बुरा व्यवहार नहीं किया और धन छोड़कर भागा। उसके उत्तर पर राजा बहुत खुश हुआ और उसे अपने दरबार में नौकरी दे दी। वह दो-चार दिन घर नहीं गया तो उसके बाप को चिंता हुई कि बेटा पकड़ लिया गया-लेकिन चार दिन के बाद लड़का आया तो बाप अचंभित रह गया अपने बेटे को अच्छे वस्त्रों में देखकर। लड़का बोला- "बापू जी, आप तो कहते थे कि किसी साधु संत की बात मत सुनो। लेकिन मैंने एक महात्मा की बात सुनी और उसी के मुताबिक काम किया तो देखिए सच्चाई का फल, मुझे राजमहल में अच्छी नौकरी मिल गई।"

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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Tuesday, January 5, 2021

बाप और बेटा

एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक सेब (apple) लेकर खड़ा था।

उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि
"बेटा एक एप्पल मुझे दे दो।"

इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक सेब को दांतों से कुतर लिया।

उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे सेब को भी दांतों से कुतर लिया।

अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी…

तभी उसके बेटे ने अपने नन्हें हाथ आगे की ओर बढ़ाते हुए पापा को कहा… पापा ये लो... ये वाला ज्यादा मीठा है।

*शिक्षा:-*
शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते।
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मन की शान्ति

एक बार बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे. जब वे एक झील के पास से गुज़र रहे थे, तब उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा, "मैं प्यासा हूँ. मेरे लिए सरोवर से पानी लेकर आओ."

वह शिष्य झील की ओर गया. उसी क्षण झील से एक बैलगाड़ी गुज़र रही थी. इस कारण पानी मैला और कलुषित हो गया. शिष्य ने सोचा, "मैं यह गन्दा पानी बुद्ध को पीने के लिए कैसे दे सकता हूँ?"

वह वापस आ गया और बुद्ध से बोला, "झील का पानी बहुत मैला है. वह पीने के लिए उचित नहीं है." लगभग आधे घंटे बाद, बुद्ध ने उसी शिष्य को झील पर दुबारा जाने को कहा.

वह शिष्य जब वहाँ गया तो उसने पाया कि सरोवर का पानी अभी भी मटमैला था. उसने लौटकर बुद्ध को इस बारे में सूचित किया. कुछ समय पश्चात्, बुद्ध ने उसी अनुयायी को पुनः झील पर जाने को कहा. इस बार शिष्य ने देखा कि पानी में मिट्टी नीचे बैठ गयी थी और झील का पानी साफ़ और स्वच्छ था. उसने एक पात्र में थोड़ा सा पानी लिया और बुद्ध के पास लेकर आया.

बुद्ध ने पानी को देखा और फिर शिष्य की ओर देखकर कहा, "देखो, तुमने पानी को साफ़ करने के लिए क्या किया. तुमने उसे ऐसे ही छोड़ दिया और मिट्टी अपने आप तह पर बैठ गयी और पानी साफ़ हो गया."

तुम्हारा मन भी ऐसा ही है. जब वह अशांत होता है, उसे वैसा ही छोड़ दो. कुछ समय बाद, वह अपने आप ही स्थिर हो जायेगा. तुम्हें उसे शांत करने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है. यह सरलता से अपने आप होगा.

*शिक्षा:-*
केवल एक अविचलित मन ही शान्ति का अनुभव कर सकता है. अपने मन की स्थिरता में ही हम यह जान सकते हैं कि हम कौन हैं. "मन की शान्ति " का होना कठिन कार्य नहीं है. अगर हम इसे समझ लें तो यह एक सहज प्रक्रिया है. क्योंकि हम वास्तविकता में वही है. हम सभी शान्तिपूर्ण आत्माएं हैं।

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परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया. हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नहीं आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए. वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा. उसने मुड़ के देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब में फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड़ के नीचे पहुंचा. बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया और आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोड़ी देर में सैनिक भी वहां पहुंच गए, पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था और उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकड़ा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कहीं सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उस पर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नहीं कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर में पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जाकर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-सम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा:-*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए. अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा.

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